सालों पहले होली उत्सव पांच दिनों तक होता था। जो कि चैत्र महीने के कृष्ण पक्ष की पहली तिथि से पंचमी तक चलता था और इसके आखिरी दिन को रंग पंचमी कहा जाता था। अब ज्यादातर जगहों पर सिर्फ होली पर ही रंग खेला जाता है वहीं, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में कुछ जगह पंचमी पर रंग खेलने की परंपरा है। इस दिन रंगपंचमी मनाते हैं। रंगपंचमी के लिए कहा जाता है कि त्रेतायुग में भगवान विष्णु ने धूलि वंदन किया था। यानी कि उस युग में भगवान विष्णु ने तेजोमय रंगों से अवतार कार्य आरंभ किया था, इसलिए ग्रंथों के मुताबिक इस दिन आसमान में अबीर-गुलाल, हल्दी और चंदन के साथ फूलों से बने रंग उड़ाने से राजसिक और तामसिक असर कम होकर उत्सव का सात्विक स्वरूप निखरता है। इससे देवी-देवता भी प्रसन्न होते हैं। इस दिन पंच देवों की पूजा का भी विधान
चैत्र महीने के पांचवें दिन पंचदेवों की पूजा करने का विधान ग्रंथों में है। हिंदू नववर्ष शुरू होने से पहले पंचदेवों की पूजा की जाती है। रंग पंचमी पर गणेश जी, देवी दुर्गा, भगवान शिव, विष्णु और सूर्य देव की पूजा की जाती है। रोग, शोक और हर तरह के दोष दूर करने की कामना से इन पंच देवों की पूजा करने की परंपरा बनी है। रंग पंचमी पर सूर्योदय से पहले उठकर पानी में गंगाजल डालकर नहाते हैं। फिर उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। इसके बाद गणेश पूजन और भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। फिर शिव और शक्ति की पूजा की जाती है। इन देवी-देवताओं की पूजा के बाद नैवेद्य लगाकर प्रसाद बांटा जाता है। फिर मंदिरों में जाकर सतरंगों से उत्सव मनाया जाता है। हवा में रंग उड़ाने से बढ़ती है दैवीय शक्ति
रंगपंचमी के रंग हवा में उड़कर पृथ्वी की दैवीय शक्तियों को बढ़ाते हैं। उसी तरह इंसानों का आभामंडल भी इन रंगों के जरिये शुद्ध और मजबूत होता है। मान्यता है कि इस दिन पृथ्वी के चारों ओर मौजूद नकारात्मक शक्तियों पर दैवीय और चैतन्य शक्ति का असर बढ़ता है। इसके चलते हवा के साथ चारो ओर आनंद बढ़ने लगता है। रंगपंचमी पर उड़ाए गए रंगों से इकट्ठा हुए शक्ति के कण बुरी ताकतों से लड़ते हैं। ब्रह्मांड में मौजूद गणपति, श्रीराम, हनुमान, शिव, श्रीदुर्गा, दत्त भगवान एवं कृष्ण ये सात देवता सात रंगों से जुड़े हैं। उसी तरह इंसानी शरीर में मौजूद कुंडलिनी के सात चक्र सात रंगों एवं सात देवताओं से बने हैं। रंगपंचमी मनाने का अर्थ है, रंगों से सातों देवताओं का आकर्षण करना। इस तरह सभी देवताओं के तत्व इंसानी शरीर में पूरे होने से आध्यात्मिक नजरिये से साधना पूरी होती है। इन रंगों से देव तत्व की अनुभूति लेना ही रंगपंचमी का उद्देश्य है। इसके लिए रंगों का इस्तेमाल दो तरह से किया जाता है। पहला, हवा में रंग उड़ाना और दूसरा, पानी से एक-दूसरे पर रंग डालना।
चैत्र महीने के पांचवें दिन पंचदेवों की पूजा करने का विधान ग्रंथों में है। हिंदू नववर्ष शुरू होने से पहले पंचदेवों की पूजा की जाती है। रंग पंचमी पर गणेश जी, देवी दुर्गा, भगवान शिव, विष्णु और सूर्य देव की पूजा की जाती है। रोग, शोक और हर तरह के दोष दूर करने की कामना से इन पंच देवों की पूजा करने की परंपरा बनी है। रंग पंचमी पर सूर्योदय से पहले उठकर पानी में गंगाजल डालकर नहाते हैं। फिर उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। इसके बाद गणेश पूजन और भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। फिर शिव और शक्ति की पूजा की जाती है। इन देवी-देवताओं की पूजा के बाद नैवेद्य लगाकर प्रसाद बांटा जाता है। फिर मंदिरों में जाकर सतरंगों से उत्सव मनाया जाता है। हवा में रंग उड़ाने से बढ़ती है दैवीय शक्ति
रंगपंचमी के रंग हवा में उड़कर पृथ्वी की दैवीय शक्तियों को बढ़ाते हैं। उसी तरह इंसानों का आभामंडल भी इन रंगों के जरिये शुद्ध और मजबूत होता है। मान्यता है कि इस दिन पृथ्वी के चारों ओर मौजूद नकारात्मक शक्तियों पर दैवीय और चैतन्य शक्ति का असर बढ़ता है। इसके चलते हवा के साथ चारो ओर आनंद बढ़ने लगता है। रंगपंचमी पर उड़ाए गए रंगों से इकट्ठा हुए शक्ति के कण बुरी ताकतों से लड़ते हैं। ब्रह्मांड में मौजूद गणपति, श्रीराम, हनुमान, शिव, श्रीदुर्गा, दत्त भगवान एवं कृष्ण ये सात देवता सात रंगों से जुड़े हैं। उसी तरह इंसानी शरीर में मौजूद कुंडलिनी के सात चक्र सात रंगों एवं सात देवताओं से बने हैं। रंगपंचमी मनाने का अर्थ है, रंगों से सातों देवताओं का आकर्षण करना। इस तरह सभी देवताओं के तत्व इंसानी शरीर में पूरे होने से आध्यात्मिक नजरिये से साधना पूरी होती है। इन रंगों से देव तत्व की अनुभूति लेना ही रंगपंचमी का उद्देश्य है। इसके लिए रंगों का इस्तेमाल दो तरह से किया जाता है। पहला, हवा में रंग उड़ाना और दूसरा, पानी से एक-दूसरे पर रंग डालना।