आज (16 अप्रैल) चैत्र नवरात्रि की अष्टमी तिथि है। नवरात्रि में में देवी पूजा करने के साथ ही देवी सती के 51 शक्तिपीठों में दर्शन-पूजन करने का खास महत्व है। चैत्र नवरात्रि की अष्टमी और नवमी तिथि पर अपने शहर में या शहर के आसपास जो भी शक्तिपीठ स्थापित हैं, वहां दर्शन करने जा सकते हैं। नवरात्रि के अवसर पर जानिए एक ऐसे शक्तिपीठ के बारे में जो तीस्ता नदी किनारे स्थित है। त्रिस्रोता शक्तिपीठ में होती हैं भ्रामरी देवी की पूजा त्रिस्रोता शक्तिपीठ पश्चिम बंगाल में स्थित है। ये मंदिर जलपाइगुड़ी शहर के पास बना हुआ है। यहां से मंदिर की दूरी करीब 20 किमी है। इस जिले के बोदा इलाके में शलवाड़ी ग्राम है। यहां तीस्ता नदी के किनारे माता भ्रामरी का मंदिर है। यहां गिरा था देवी सती का उल्टा पैर त्रिस्रोता शक्तिपीठ के संबंध में मान्यता है कि इस क्षेत्र में देवी सती का वाम यानी उल्टा पैर गिरा था। यहां की शक्ति भ्रामरी देवी हैं और भैरव ईश्वर हैं। भारत के सभी बड़े शहरों से रेल मार्ग से जलपाइगुड़ी पहुंचा जा सकता है। यहां से बस या प्राइवेट टैक्सी से मंदिर पहुंच सकते हैं। ये है शक्तिपीठ स्थापना की पौराणिक कथा सभी 51 शक्तिपीठ माता सती के हैं। माता सती के पिता प्रजापति दक्ष थे। सती ने भगवान शिव से विवाह किया था, लेकिन दक्ष शिव जी पसंद नहीं करता था। दक्ष ने हरिद्वार में एक यज्ञ का आयोजन किया था। इस यज्ञ में दक्ष ने सभी देवी-देवताओं को आमंत्रित किया, लेकिन शिव और सती को आमंत्रित नहीं किया। माता सती को ये बात मालूम हुई तो वह भी यज्ञ में जाने के लिए तैयार हो गईं। शिव जी ने माता सती को समझाया कि बिना आमंत्रण हमें यज्ञ में नहीं जाना चाहिए, लेकिन शिवजी के समझाने पर भी वे नहीं मानीं। शिव जी के मना करने के बाद भी माता सती अपने पिता के यहां यज्ञ में सम्मिलत होने के लिए चली गईं। जब माता सती यज्ञ स्थल पर पहुंची तो दक्ष ने देवी के सामने ही शिव जी के लिए अपमानजनक बातें कह दीं। शिव जी का अपमान माता सती से सहन नहीं हुआ और उन्होंने हवन कुंड में कूदकर अपनी देह त्याग दी। जब ये बात शिव जी तक पहुंची तो वे बहुत क्रोधित हुए और उनका तीसरा नेत्र खुल गया। वीरभद्र ने शिव जी के कहने पर दक्ष का सिर काट दिया और शिव जी सती के वियोग में सती का जला हुआ शव लेकर सृष्टि में घूमने लगे। शिव जी को इस वियोग से बाहर निकालने के लिए भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से सती माता की देह को कई हिस्सों में बांट दिया। इस कारण जहां-जहां सती के अंग गिरे, वहां-वहां शक्तिपीठ स्थापित हो गए।