आज (15 अप्रैल) चैत्र नवरात्रि की सप्तमी तिथि है। देशभर में देवी सती के 51 शक्तिपीठ हैं और नवरात्रि के दिनों में इन मंदिरों में भक्तों की भीड़ काफी अधिक रहती है। नवरात्रि के अवसर पर जानिए पंजाब के जालंधर शक्तिपीठ से जुड़ी खास बातें…
पंजाब में देवी शक्ति का एक ही शक्तिपीठ स्थापित है। इसे जालंधर शक्तिपीठ, त्रिपुरमालिनी, स्तन पीठ और त्रिगर्त तीर्थ के नाम से जाना जाता है। ये मंदिर एक तालाब के बीच बना हुआ है। जालंधर रेलवे स्टेशन से इस शक्तिपीठ की दूरी करीब 1 किमी है। जालंधर देश के सभी बड़े शहरों से रेल और सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है। यहां आसानी से पहुंचा जा सकता है। यहां गिरा था देवी सती का स्तन जालंधर शक्तिपीठ क्षेत्र में देवी का स्तन गिरा था। यहां की शक्ति त्रिपुरमालिनी और भैरव भीषण हैं। इस शक्तिपीठ में सभी देवी-देवता और तीर्थ अंशरूप में निवास करते हैं। ऐसी मान्यता है। पौराणिक कथाओं के मुताबिक, वेद व्यास, परशुराम, वशिष्ठ मुनि ने भी त्रिपुरमालिनी देवी की पूजा की थी। ये है शक्तिपीठ स्थापना की पौराणिक कथा सभी 51 शक्तिपीठ माता सती के हैं। माता सती के पिता प्रजापति दक्ष थे। सती ने भगवान शिव से विवाह किया था, लेकिन दक्ष शिव जी पसंद नहीं करता था। दक्ष ने हरिद्वार में एक यज्ञ का आयोजन किया था। इस यज्ञ में दक्ष ने सभी देवी-देवताओं को आमंत्रित किया, लेकिन शिव और सती को आमंत्रित नहीं किया। माता सती को ये बात मालूम हुई तो वह भी यज्ञ में जाने के लिए तैयार हो गईं। शिव जी ने माता सती को समझाया कि बिना आमंत्रण हमें यज्ञ में नहीं जाना चाहिए, लेकिन शिवजी के समझाने पर भी वे नहीं मानीं। शिव जी के मना करने के बाद भी माता सती अपने पिता के यहां यज्ञ में सम्मिलत होने के लिए चली गईं। जब माता सती यज्ञ स्थल पर पहुंची तो दक्ष ने देवी के सामने ही शिव जी के लिए अपमानजनक बातें कह दीं। शिव जी का अपमान माता सती से सहन नहीं हुआ और उन्होंने हवन कुंड में कूदकर अपनी देह त्याग दी। जब ये बात शिव जी तक पहुंची तो वे बहुत क्रोधित हुए और उनका तीसरा नेत्र खुल गया। वीरभद्र ने शिव जी के कहने पर दक्ष का सिर काट दिया और शिव जी सती के वियोग में सती का जला हुआ शव लेकर सृष्टि में घूमने लगे। शिव जी को इस वियोग से बाहर निकालने के लिए भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से सती माता की देह को कई हिस्सों में बांट दिया। इस कारण जहां-जहां सती के अंग गिरे, वहां-वहां शक्तिपीठ स्थापित हो गए। जालंधर में देवी सती का स्तन गिरा था, इस वजह से यहां शक्तिपीठ हुआ।
पंजाब में देवी शक्ति का एक ही शक्तिपीठ स्थापित है। इसे जालंधर शक्तिपीठ, त्रिपुरमालिनी, स्तन पीठ और त्रिगर्त तीर्थ के नाम से जाना जाता है। ये मंदिर एक तालाब के बीच बना हुआ है। जालंधर रेलवे स्टेशन से इस शक्तिपीठ की दूरी करीब 1 किमी है। जालंधर देश के सभी बड़े शहरों से रेल और सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है। यहां आसानी से पहुंचा जा सकता है। यहां गिरा था देवी सती का स्तन जालंधर शक्तिपीठ क्षेत्र में देवी का स्तन गिरा था। यहां की शक्ति त्रिपुरमालिनी और भैरव भीषण हैं। इस शक्तिपीठ में सभी देवी-देवता और तीर्थ अंशरूप में निवास करते हैं। ऐसी मान्यता है। पौराणिक कथाओं के मुताबिक, वेद व्यास, परशुराम, वशिष्ठ मुनि ने भी त्रिपुरमालिनी देवी की पूजा की थी। ये है शक्तिपीठ स्थापना की पौराणिक कथा सभी 51 शक्तिपीठ माता सती के हैं। माता सती के पिता प्रजापति दक्ष थे। सती ने भगवान शिव से विवाह किया था, लेकिन दक्ष शिव जी पसंद नहीं करता था। दक्ष ने हरिद्वार में एक यज्ञ का आयोजन किया था। इस यज्ञ में दक्ष ने सभी देवी-देवताओं को आमंत्रित किया, लेकिन शिव और सती को आमंत्रित नहीं किया। माता सती को ये बात मालूम हुई तो वह भी यज्ञ में जाने के लिए तैयार हो गईं। शिव जी ने माता सती को समझाया कि बिना आमंत्रण हमें यज्ञ में नहीं जाना चाहिए, लेकिन शिवजी के समझाने पर भी वे नहीं मानीं। शिव जी के मना करने के बाद भी माता सती अपने पिता के यहां यज्ञ में सम्मिलत होने के लिए चली गईं। जब माता सती यज्ञ स्थल पर पहुंची तो दक्ष ने देवी के सामने ही शिव जी के लिए अपमानजनक बातें कह दीं। शिव जी का अपमान माता सती से सहन नहीं हुआ और उन्होंने हवन कुंड में कूदकर अपनी देह त्याग दी। जब ये बात शिव जी तक पहुंची तो वे बहुत क्रोधित हुए और उनका तीसरा नेत्र खुल गया। वीरभद्र ने शिव जी के कहने पर दक्ष का सिर काट दिया और शिव जी सती के वियोग में सती का जला हुआ शव लेकर सृष्टि में घूमने लगे। शिव जी को इस वियोग से बाहर निकालने के लिए भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से सती माता की देह को कई हिस्सों में बांट दिया। इस कारण जहां-जहां सती के अंग गिरे, वहां-वहां शक्तिपीठ स्थापित हो गए। जालंधर में देवी सती का स्तन गिरा था, इस वजह से यहां शक्तिपीठ हुआ।