पीलीभीत से वरुण गांधी का टिकट कटने के बाद उन्होंने पहली बार जनता के लिए खुला पत्र लिखा है। इसमें उन्होंने पीलीभीत से अपने इमोशनल रिश्ते का जिक्र किया है। वरुण ने कहा कि 1983 में जब वह 3 साल के थे, तब मां की उंगली पकड़कर पहली बार पीलीभीत आए थे। वरुण ने यह भी लिखा, ‘एक सांसद के तौर पर भले ही उनका रिश्ता खत्म हो रहा हो, लेकिन पीलीभीत से रिश्ता आखिरी सांस तक खत्म नहीं होगा। सांसद के रूप में नहीं, तो बेटे के तौर पर सही, मैं आपकी सेवा के लिए प्रतिबद्ध हूं।’ यही नहीं, वरुण ने आगे कहा, ‘मैं आम आदमी के लिए राजनीति में आया हूं। यह मैं करता रहूंगा, भले ही उसकी कोई भी कीमत चुकानी पड़े।’ पीलीभीत से सांसद वरुण गांधी का भाजपा ने 2024 चुनाव में टिकट नहीं दिया है। उनकी जगह योगी सरकार में मंत्री जितिन प्रसाद को भाजपा ने पीलीभीत से उतारा है। बुधवार को जितिन प्रसाद ने पीलीभीत से नामांकन किया। हालांकि, इस दौरान वरुण शामिल नहीं हुए। वरुण गांधी का पत्र… लेटर की 3 खास बातें… लेटर के 2 मायने… 2009 में वरुण ने इसी सीट से किया राजनीतिक डेब्यू
पीलीभीत में 35 साल से वरुण और मेनका गांधी चुनाव लड़ रहे हैं। 1989 से अब तक यानी 30 साल से इस सीट पर मां-बेटे का कब्जा रहा है। सिर्फ 1991 के चुनाव मेनका गांधी यहां से लोकसभा चुनाव हार गईं थीं। वरुण गांधी ने अपना राजनीतिक डेब्यू 2009 में इसी सीट से किया था। पहले चुनाव में ही उन्होंने 2.81 लाख के अंतर से अपने विरोधी को हराया। इसके बाद 2014 में भाजपा ने मां-बेटे की सीट बदली। यानी, वरुण को सुल्तानपुर और मेनका को पीलीभीत से टिकट दिया। सुल्तानपुर में भी वरुण ने बड़ी जीत हासिल की। 2019 में वरुण को वापस पीलीभीत से टिकट मिला। इस सीट पर उन्होंने जीत हासिल की। वरुण गांधी ने पीलीभीत सीट से नामांकन पर्चा खरीदा था। चर्चा हुई थी वह निर्दलीय चुनाव लड़ सकते हैं। हालांकि, उन्होंने नामांकन नहीं किया। बुधवार (27 मार्च) को पीलीभीत सीट पर नामांकन की आखिरी डेट थी। भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव थे वरुण, 10 साल से कोई जिम्मेदारी नहीं
2013 में वरुण गांधी को भाजपा का राष्ट्रीय महासचिव नियुक्त किया गया था। इसी साल उन्हें पश्चिम बंगाल में भाजपा का प्रभारी भी बनाया गया था। वह वक्त ऐसा था, जब UP की सियासत में भाजपा में वरुण का नाम प्रमुख नेताओं में था। यही नहीं, UP के CM के लिए भी उनका नाम सियासी गलियारे की चर्चा में आ जाता था। हालांकि, 2014 में भाजपा की नई कार्यकारिणी का गठन हुआ। इसमें वरुण को जगह नहीं मिली। 10 साल में वरुण को किसी तरह की कोई बड़ी जिम्मेदारी पार्टी में नहीं मिली। पीलीभीत से 2.5 लाख से ज्यादा अंतर से दो चुनाव जीते वरुण वरुण गांधी को 2019 में 59.4% वोट मिले, सपा गठबंधन से 21% ज्यादा; 30 साल से सीट पर मां-बेटे का कब्जा वरुण 3 बार से भाजपा सांसद हैं। लेकिन, न तो उनके पास पार्टी में कोई पद है और न ही कोई मंत्रालय। वह भाजपा में रहते हुए भी भाजपा से दूर हैं। पढ़ें पूरी खबर… सोनिया की रायबरेली को चिट्ठी:अब सीधी सेवा का अवसर नहीं मिलेगा पर प्राण आपके पास, परिवार को संभालिएगा सोनिया गांधी ने रायबरेलीवासियों के नाम एक चिट्ठी लिखी। इसमें उन्होंने इस बात का जिक्र किया कि अब वे लोकसभा चुनाव नहीं लड़ेंगी, लेकिन उनके मन और प्राण हमेशा रायबरेली के पास ही रहेंगे। पढ़ें पूरी खबर…
पीलीभीत में 35 साल से वरुण और मेनका गांधी चुनाव लड़ रहे हैं। 1989 से अब तक यानी 30 साल से इस सीट पर मां-बेटे का कब्जा रहा है। सिर्फ 1991 के चुनाव मेनका गांधी यहां से लोकसभा चुनाव हार गईं थीं। वरुण गांधी ने अपना राजनीतिक डेब्यू 2009 में इसी सीट से किया था। पहले चुनाव में ही उन्होंने 2.81 लाख के अंतर से अपने विरोधी को हराया। इसके बाद 2014 में भाजपा ने मां-बेटे की सीट बदली। यानी, वरुण को सुल्तानपुर और मेनका को पीलीभीत से टिकट दिया। सुल्तानपुर में भी वरुण ने बड़ी जीत हासिल की। 2019 में वरुण को वापस पीलीभीत से टिकट मिला। इस सीट पर उन्होंने जीत हासिल की। वरुण गांधी ने पीलीभीत सीट से नामांकन पर्चा खरीदा था। चर्चा हुई थी वह निर्दलीय चुनाव लड़ सकते हैं। हालांकि, उन्होंने नामांकन नहीं किया। बुधवार (27 मार्च) को पीलीभीत सीट पर नामांकन की आखिरी डेट थी। भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव थे वरुण, 10 साल से कोई जिम्मेदारी नहीं
2013 में वरुण गांधी को भाजपा का राष्ट्रीय महासचिव नियुक्त किया गया था। इसी साल उन्हें पश्चिम बंगाल में भाजपा का प्रभारी भी बनाया गया था। वह वक्त ऐसा था, जब UP की सियासत में भाजपा में वरुण का नाम प्रमुख नेताओं में था। यही नहीं, UP के CM के लिए भी उनका नाम सियासी गलियारे की चर्चा में आ जाता था। हालांकि, 2014 में भाजपा की नई कार्यकारिणी का गठन हुआ। इसमें वरुण को जगह नहीं मिली। 10 साल में वरुण को किसी तरह की कोई बड़ी जिम्मेदारी पार्टी में नहीं मिली। पीलीभीत से 2.5 लाख से ज्यादा अंतर से दो चुनाव जीते वरुण वरुण गांधी को 2019 में 59.4% वोट मिले, सपा गठबंधन से 21% ज्यादा; 30 साल से सीट पर मां-बेटे का कब्जा वरुण 3 बार से भाजपा सांसद हैं। लेकिन, न तो उनके पास पार्टी में कोई पद है और न ही कोई मंत्रालय। वह भाजपा में रहते हुए भी भाजपा से दूर हैं। पढ़ें पूरी खबर… सोनिया की रायबरेली को चिट्ठी:अब सीधी सेवा का अवसर नहीं मिलेगा पर प्राण आपके पास, परिवार को संभालिएगा सोनिया गांधी ने रायबरेलीवासियों के नाम एक चिट्ठी लिखी। इसमें उन्होंने इस बात का जिक्र किया कि अब वे लोकसभा चुनाव नहीं लड़ेंगी, लेकिन उनके मन और प्राण हमेशा रायबरेली के पास ही रहेंगे। पढ़ें पूरी खबर…